जामाई षष्ठी अथवा पाहुन षष्ठी की कहानी

जामाई षष्ठी अथवा पाहुन षष्ठी की कहानी

जिस त्योहार को बंगाल का जमाई षष्ठी कहा जाता है उसी त्योहार को मिथलांचल का में पाहुन षष्ठी कहा जाता है।

=बंगाल और मिथिला की ज़मीन बहुत उपजाऊ होती है। इसलिए जमाई षष्ठी में जमाई या पाहुन को ससुराल बुलाकर सासु द्वारा पाँच प्रकार का फल खिलाया जाता था। लेकिन जहां बिहार में यह त्योहार विलुप्त हो गया। वहीं बंगाल में इस त्योहार पर बाज़ार का क़ब्ज़ा हो गया। इसमें पीछे छूट गया मौसमी फल और सब्ज़ी।

लेकिन आज यह त्योहार बंगाल का हो गया और बिहार की दावेदारी समाप्त हो गई। बिहार के दरभंगा को बंगाल का द्वारा कहा जाता है।

इसलिए यदि बंगाली को मुज़फ़्फ़रपुर का लीची पसंद है तो बिहारी को भी माल्दा आम बहुत पसंद है।

बिहार को हमेशा असभ्य और अनपढ़ कहकर संबोधित किया जाता है। मैथिली भाषा को आठवीं अनुसूची में जगह में मिलने बाद भी मिथलांचल की कहानी सिनेमा और साहित्य में नहीं आ पाई। जिसके कारण वहाँ मनाये जाने  वहीं बिहार का पड़ोसी राज्य बंगाल अपनी हर कहानी को बारीकी से गढ़ कर लोगों तक प्रस्तुत करता है। इसमें साहित्य और फ़िल्म की बड़ी भूमिका है।

जामाई षष्ठी अथवा पाहुन षष्ठी की कहानी भी कुछ ऐसी है। आज जहां बंगाल में यह पर्व धूम-धाम से मनाया जाता है। वहीं बिहार में लोग इस त्योहार को भुल गए। ज़रूरत है अपने त्योहार को पहचानने की।

बिहार की बढ़ती जनसंख्या, बेरोज़गारी और पलायन ने लोगों न सिर्फ़ अपनों से दूर किया बल्कि अपनी संस्कृति और त्योहार से भी दूर कर दिया। इसलिए अभी भी वक़्त है वापस लौटने का।

भारत कृषि प्रधान देश होने साथ साथ भोजन प्रधान देश भी है। सब कुछ के तरफ़ स्वादिष्ट भोजन एक तरफ़ इसलिए जामाई षष्ठी अथवा पाहुन षष्ठी आज भी प्रासंगिक है। बस इंतज़ार इसे खूब धूम धाम से मनाने की

माधव