बनारसी साड़ी की दुनिया
साड़ी के बारे में तो आप ने सुना ही होगा। भारत में कई प्रकार की साड़ी महिलाएँ पहनती है। इसमें एक साड़ी है जिसे बनारसी साड़ी है। जिसका विशेष महत्व है। यह साड़ी विवाह के विशेष अवसर पर दुल्हन द्वारा पहनी जाती है।Pure Banarasi Silk Saree की पहचान करना भी लोगों के लिए मुश्किल भरा होता है।
वैसे देखा जाये तो आप सिर्फ़ ऑनलाइन ई कॉमर्स वेबसाइट बना कर इस साड़ी का व्यवसाय कर सकते हैं। यदि सही समान लोगों को पसंद आया तो अच्छी ख़ासी प्रॉफिट बना सकते है। क्योंकि साड़ी के बिज़नेस में बहुत परत है। इसे पहले आपको समझना होगा।यदि आप चाहे तो किसी कपड़े की दुकान पर कुछ दिन काम करके भी इस व्यापार की बहुत अच्छी तरह समझ सकते हैं।क्योंकि किसी भी बिज़नेस में कूदने से पहले आपको सीखना चाहिए। तभी उसमें कामयाबी मिलेगी।
चलो बनारसी साड़ी का व्यापार बाद में करेंगे लेकिन पहले इस साड़ी को बेहतर ढंग से समझते है। ताकि आपको कभी कोई ठग न ले।
बनारसी साड़ी (Pure Banarasi Silk Saree) किसे कहते हैं?
बनारसी साड़ी एक विशेष प्रकार की साड़ी होती है जिसे शादी के शुभ अवसर पर दुल्हन द्वारा पहनी जाती है।
किस धर्म के लोग को बनारसी साड़ी पहनते है?
भूमण्डलीकरण के दौर विचार से अधिक कपड़े और भोजन के क्षेत्र का विस्तार हुआ है। इसलिए शहर में तो यह देखा जाता है कि कोई कभी कुछ भी पहन लेता है। लेकिन यह साड़ी मुख्य रूप से हिंदू स्त्रियाँ विवाह के अवसर पर पहनती है।
कहाँ कहाँ बनारसी साड़ी (100% Pure Banarasi Silk Saree) बनाया जाता है?
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है बनारसी मतलब बनारस लेकिन उत्तर प्रदेश के और भी जगह है जहां बनारसी साड़ी बनाया जाता है। जैसे चंदौली, जौनपुर, आज़मगढ़, मिर्ज़ापुर, संत रविदास नगर। यह सभी जगह बनारस के आस-पास ही स्थित है।
बनारसी साड़ी (100% Pure Banarasi Silk Saree) की विशेषता क्या है?
बनारसी साड़ी एक सुन्दर रेशमी साड़ी होता है। रेशमी का संदर्भ यहाँ रेशम से है। जिसे अंग्रेज़ी में सिल्क भी कहते हैं। यह साड़ी अपनी ज़री के लिए भी जानी जाती है। यह न सिर्फ़ भारत बल्कि दुनिया में प्रसिद्ध है। ऐसा माना जाता है कि जब सोना सस्ता था तब इसमें शुद्ध सोने का प्रयोग किया जाता था। लेकिन महंगाई ने अब सोने के प्रयोग पर रोक लगा दी। इसलिए कुछ लोग विशेष ऑर्डर देकर सोने वाली बनारसी साड़ी अभी भी बनवाते है। लेकिन अधिकांश साड़ी में नक़ली चमकदार ज़री का प्रयोग किया जाता है। जिसे मोटिफ़ भी कहते हैं।
बनारसी साड़ी में मोटिफ़ क्या होता है?
मोटिफ़ की वजह से बनारसी साड़ी की पहचान है। यदि आप बनारसी साड़ी ख़रीदने जाएँगे तो उसमें देखेंगे कि बूटी, बूटा, कोणीय, बेल, जाल और जंगला, झालर आदि लगा होता है।
अब समझते हैं कि बूटी को। यह बनारसी साड़ी में छोटे-छोटे तस्वीरों की शेप के लिये होता है। जब बूटी बनाया बनाया जाता है है तो इसमें कई तरह के पैटर्न से दो या तीन रंग की धागा की मदद से बनाई जाती है। यदि किसी बूटी में पाँच रंग का प्रयोग हुआ है तो उसे जामेवार कहते हैं। यह किसी भी ऑर्जिनल बनारसी साड़ी की पहली पहचान होती है। जहां एक तरफ़ साड़ी की निचले हिस्से को हुनर के रंग से सजाया जाता है वही दूसरी तरफ़ इसमें गोल्ड या सिल्वर धागे से भी इसे भरा जाता है। इन कार्यों के लिए इसमें करघा कारीगरों द्वारा बौबिन का प्रयोग किया जाता है। वहीं वर्तमान में अब सिरकी (बौबिन) की जगह रेशमी धागों का प्रयोग कर दिया जात है। जिसे मीना कहा जाता है। बस कारीगरों को यह देखना होता है कि मीने का रंग और हुनर के रंग एक जैसा होना चाहिए।
बनारसी साड़ी में जब कारीगर बूटी की आकृति को बड़ा कर देता है तो उसे बूटा कहते है। बनारसी साड़ी में बूटा के रूप में पेड़-पौधा, और फल की आकृति बनाया जाता है। यदि आप किसी बनारसी साड़ी को हाथ में लेंगे तो बूटा साड़ी के बॉर्डर, पल्लू और आँचल में काढ़ा हुआ दिख जाएगा। कई बार इसे साड़ी के कोनिया पर भी काढ़ा जाता है। यह तभी संभव है जब वह ओरिजिनल बनारसी साड़ी हो।
बनारसी साड़ी ख़रीदते समय यह आपको ध्यान देना है कि जिस साड़ी में स्वर्ण तथा चाँदी के धागों का प्रयोग किया जाता है उन्हीं में कोनिया को काढ़ा जाता है। यह पाया जाता है कि बनारसी साड़ी के कोनिया में रेशमी धागों का प्रयोग नहीं किया जाता है। यह देखन बहुत दिलचस्प होता है कि कोने से बना कोनिया पर जो आम का चित्र होता है उसे बनाने के लिए कारीगरों को बहुत खून पसीना बहाना पड़ता है। यह हाथों से बनाया जाता है और एक विरासत से मिली पारम्परिक कला है जो हर किसी के लिये संभव नहीं है।
इसी तरह बनारसी साड़ी में बेल, जाल और जंगला, झालर होता है। जिसे ख़रीदने से पहले आपको जाँच लेना चाहिए।क्या आपको पता है कि बनारसी साड़ी में गणित के चित्र भी होते है। यदि आप मौक़ा मिले तो बनारसी साड़ी को ध्यान से देखियेगा वहाँ आपको धारीदार फूल पत्तियों जो होती है उसे बहुत ही ज्यामितीय ढंग से सजाया जाता है। यह क्षैतिज, आडे या टेड़े मेड़े तरीके से बताया जाता है।
बनारसी साड़ी में जाल और जंगला का भी महत्व होता है। यदि सरल भाषा में इसे समझें तो जाल एक प्रकार का पैटर्न है जिसके भीतर बूटी बना दी जाती है। इसके लिए कारीगर गोल्डन या सिल्वर की ज़री का प्रयोग करते हैं। जहां मुख्य रूप से फ़ुल पत्ते, जानवर और पशु पक्षी बने होते है।
इसी तरह बनारसी साड़ी में झालर होता है जो बॉर्डर के तुरंत बाद होता है। इसे अंगना कह कर भी संबोधित किया जाता है। यदि आप साड़ी ख़रीदते हैं तो यहाँ आपको तोता, मोर, पान, कैरी, तिन पतिया, पाँच पतिया देखने को मिलेगा जो बनारसी साड़ी को एक विशिष्ट साड़ी में तब्दील करती है।
बनारसी साड़ी और लड़की का इमोशन
बनारसी साड़ी सिर्फ़ एक साड़ी नहीं होती है बल्कि यह चित्रों का एक कैनवास होता है। एक लड़की जब विवाह की कल्पना करती है तो वह ख़ुद को बनारसी साड़ी में लिपटी हुई पाती है। बुढ़ापे में जब कोई औरत अतीत में जाकर झांकती है तब भी वह एक बनारसी साड़ी में लिपटी हुई नज़र आती है। इसलिए यह बनारसी साड़ी सिर्फ़ एक साड़ी नहीं है बल्कि यह इमोशन है। इसलिए इमोशन के सामने डिजिट कम पर जाता है। शायद यही कारण है आज भी इस साड़ी का महत्व बना हुआ है। विशेषकर बंगाल में यह देखा जाता है।
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