2024 लोकसभा चुनाव: क्यों स्मृति ईरानी और भाजपा UP में चुनाव हार गई

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स्मृति ईरानी और भाजपा की हार को सरल भाषा में समझते हैं  Bhasha Times

इस बार का चुनाव वैसा नहीं हुआ जैसा एनडीए ने सोचा था। इसलिए सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की चर्चित कविता राम की शक्ति पूजा इस लोक सभा चुनाव में प्रासंगिक हो जाती है। क्योंकि कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी और भाजपा को अपराजेय शक्ति मान लिया था। राम की शक्ति पूजा  कविता की हर पंक्ति महत्वपूर्ण है । एक बार पूरा कविता आप सभी पाठक को पढ़ना चाहिए तभी समझ पायेंगे कि साहित्य कैसे अपने समय से आगे की बात करता है।

“रवि हुआ अस्त : ज्योति के पत्र पर लिखा अमर
रह गया राम-रावण का अपराजेय समर” 

लेकिन जिस आज़ादी को पाने के लिए निराला ने इस कविता को लिखा था। वह जानता आज़ादी के कुछ समय बाद ही सब कुछ समझ गई। देश की हक़ीक़त क्या है। इस बिंदु पर कभी और विस्तार से बात करेंगे।  फ़िलहाल आज स्मृति ईरानी और भारतीय जनता पार्टी की हार को समझते है। लेकिन जैसे-जैसे आधुनिकता का विकास होगा वैसे वैसे राजनीति कठिन होती जाएगी। 

 स्मृति ईरानी का महंगाई पर चुप्पी साधना 

यह सत्य है कि यदि कांग्रेस की भी सरकार होती तो महंगाई को नियंत्रित करने में असफल रहती। जिस तरह विश्व स्तर पर कोरोना का मार पड़ा। रुस यूक्रेन का युद्ध चल रहा है।

इज़राइल और फ़िलस्तीन एक दूसरे के खून के प्यासे बने हुए है। चीन के साथ भारत का संबंध बिगड़ा हुआ है। इन सभी बिंदुओं पर तो बारीकी से शोध किया जा सकता है।

इसका महंगाई से सीधा और घुमा के दोनों तरह से ज़रूर संबंध है। इसलिए इन परिस्थिति को रोकने में कांग्रेस की सरकार भी विफल ही रहती।

यह सत्य है कि वोट बैंक की राजनीति को मज़बूत करने के लिए कुछ ऐसे फ़ैसले ज़रूर लेती जिससे जनता को यह संदेश भेज पाती कि वह महंगाई से लड़ रही है। यह संभव है कि इस परिस्थिति में भी किसी भी सरकार की हार हो सकती है. भले कोई कुछ भी कहे।
इस लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने भी महंगाई और बेरोज़गारी के मुद्दे को उठाती रही। सरकार किसी की भी हो लेकिन इस मुद्दे पर चुप्पी साध लेती है। जिसका फ़ायदा हमेशा विपक्ष को होता है।

यह देखा गया है कि बीजेपी ने कभी इस प्रासंगिक मुद्दे का फ़ायदा उठाया तो कभी कांग्रेस ने। लेकिन कभी इसका फ़ायदा जनता को नहीं मिला। जनता ने  महंगाई के साथ जीने की आदत डाल ली है। जो एक बार आ जाये तो फिर जाती कहाँ है। बस उसे भगाने के लिए आंदोलन और धरना प्रदर्शन होता रहता है।

इस मुद्दे पर बलि का बकरा वह बनता है जिसकी सरकार होती है। अमेठी में भी यह मुद्दा स्मृति ईरानी के ख़िलाफ़ काम किया। क्योंकि वहाँ राज्य में भी बीजेपी की सरकार है। 

राहुल गांधी पर आक्रामक होना 

स्मृति ईरानी का भारतीय जनता पार्टी में क़द इसलिए बड़ा हुआ था क्योंकि वह राहुल गांधी से हारकर और हराकर संसद भवन पहुँची थी। जिस भारत को बीजेपी कांग्रेस मुक्त देखना चाहती है उस सपने को साकार करने में स्मृति ईरानी ने कोई कसर नहीं छोड़ा। लेकिन अति हर चीज़ का बुरा होता है।

स्मृति ईरानी ने कई ऐसे मौके पर राहुल गांधी के चरित्र को लेकर भी सवाल उठा दिए। जिससे लोगों में राहुल के प्रति कहीं न कहीं समर्थन ज़रूर आया। क्योंकि सोशल मीडिया ने राहुल गांधी की छवि बाहुबली की नहीं बल्कि पप्पू की गढ़ी गई थी। जिसे दुनिया के बारे में कुछ भी समझ नहीं है। स्मृति ईरानी का राहुल पर हमला और बीजेपी के आईटी सेल के हमले में बहुत अंतर्विरोध था।

गांधी परिवार पर बयानबाज़ी करना 

यदि भाजपा के पास हिंदुत्व का मुद्दा था तो स्मृति ईरानी के पास गांधी परिवार का मुद्दा था। समय ने भी स्मृति ईरानी का साथ दिया था।

वह अमेठी से लोकसभा संसद थी। यह वही अमेठी है जिसे कांग्रेस के कारण वीआईपी सीट माना जाता है। न सिर्फ़ भाजपा के लिए बल्कि अन्य लोगों के लिए भी कि कांग्रेस का मतलब ही गांधी परिवार होता है। जिसे कुचलने में स्मृति ईरानी और भाजपा असफल रही है।

यह भाजपा भी जानती है कि जब तक कांग्रेस के पास 15 से 25 प्रतिशत का वोट बैंक का शेयर है, तब तक भाजपा के भारतीय राजनीति में कांग्रेस मुक्त भारत का सपना देखना असंभव है।

संसद प्रतिनिधि का भेदभाव रैवैया

स्मृति ईरानी संसद के साथ साथ मंत्री भी थी। इसलिए किसी आम संसद की तरह वह अपने क्षेत्र में हमेशा नहीं रह सकती थी। इसलिए उसे किसी न किसी को अपना प्रतिनिधि चुनना पड़ा था। जिसका नाम मीडिया में कई बार आया भी है।

मीडिया रिपोर्ट्स में यह खबर भी सामने आई है कि उनके प्रतिनिधि का रैवाया अमेठी की जानता के साथ दोस्ताना नहीं था।

यह बात बेगूसराय से लोकसभा संसद गिरिराज सिंह के मामले भी सामने आया है। लेकिन वहाँ की राजनीतिक परिस्थिति अलग थी। लोकसभा संसद के लिए यह बहुत ही ज़रूरी विषय है जिस पर ध्यान देना चाहिए। ताकि किसी एक व्यक्ति के कारण उनका पूरा कैरियर समाप्त न हो जाए।

आरक्षण ख़त्म होने का डर

2015 के बिहार विधान सभा में बीजेपी की हार हुई थी और नीतीश संग तेजस्वी की सरकार बनी थी।इसमें जहां एक तरफ़ जाति का  समीकरण छिपा हुआ था तो वही दूसरी तरफ़ आरक्षण ख़त्म होने का डर भी था।

यदि आप को याद होगा उस समय आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत का बयान बहुत चर्चा में आया था जिसमें कहा गया था कि आरक्षण पर सोचना चाहिए। फिर क्या?

जब तक बीजेपी ने कुछ सोचा तब तक यह मुद्दा पूरा बिहार नहीं बल्कि पूरा भारत घूम लिया। परिणाम सबके सामने था उस चुनाव में भाजपा राज्य में सरकार नहीं बना पाई।

मोदी सरकार ने EWS का बिल लाया जिसने फिर से मंडल की राजनीति को मज़बूत कर दिया। इस आरक्षण के  विरोध में खूब  हंगामा हुआ।

मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया लेकिन वहाँ भी इसके विरोधी कुछ नहीं कर पाएँ। धीरे-धीरे  विपक्ष यह संदेश भेजने में सफल रही कि यह तानाशाह की सरकार है। जो कुछ भी कर सकती है। अर्थात् आरक्षण ख़त्म कर सकती है। 
आरक्षण ख़त्म होने का मुद्दा उत्तर प्रदेश में बेहतर तरीक़े से कांग्रेस और समाजवादी पार्टी ने भुनाया। जिसको अबकी बार 400 पार  के नारे और अधिक ज़मीन पर मज़बूत कर दिया। 
देश में न तो बीजेपी और न कांग्रेस वर्तमान समय तक जाति और छूआछूत के मुद्दे को समाप्त कर पाई है। लेकिन मोदी सरकार ने हिंदू को एक माला के भीतर ज़रूर पिरोने का प्रयास किया। इसका उदाहरण राम मंदिर से दिया जा सकता है।

भारत में जाति को समझने के लिए गाँव घूमना चाहिए। धर्म की राजनीति को समझने के महानगर और छोटे शहर में किराए का मकान ढूँढना चाहिए। उस दिन आप को सभी राजनीतिक दल का काम समझ में जाएगा। 

यदि भाजपा ने हिंदू धर्म को अपना एजेंडा और प्रॉपोगेंडा बनाया है तो कांग्रेस उससे चार कदम आगे बढ़कर जाति को बनाया है। कांग्रेस मुसलमान को कितना पसंद करती है इसके लिए बीबीसी हिन्दी पर प्रकाशित आलेख को पढ़ना चाहिए। जो विजय लक्ष्मी पंडित पर है। https://www.bbc.com/hindi/articles/c9w0ykp7myro
400 पार का वादा: यदि भाजपा के पास 272 से अधिक सीट थी। और पिछले दो टर्म में मोदी सरकार एक मज़बूत सरकार थी। इसके बाद भी  विपक्ष मुक्त भारत का सपना देखना एक लोकतांत्रिक देश के लिए किसी प्रलय से कम नहीं था। चुनी हुई सरकार के प्रमुख को जेल में डालना। कभी एक देश एक चुनाव का नारा तो कभी ख़ान पान पर हमले ने भाजपा के कार्यकर्ता को भी संशय में डाल दिया कि आख़िर मोदी चाहते क्या है? साथ ही दूसरे पार्टी से आये नेता को पार्टी में उच्च पद पर बैठाना कई बार लोगों को पसंद नहीं आता है। भारत में राजनीति जहां नेताओं के लिए सिर्फ़ आँकड़ों का खेल है वही कार्यकर्ता और वोटर के लिए एक प्रेम है। बंगाल में कई ऐसे घर जाने का अवसर मिला जहां भाई भाई  सिर्फ़ तृणमूल और भाजपा में बट कर के एक दूसरे से अपने निजी संबंध को ख़राब कर लिया है। बंगाल में ऐसे कई उदाहरण मिलेंगे। इस पर पाठक को गंभीरता से शोध करना चाहिए।
नरेंद्र मोदी और उनके सहयोगी को विचार करना होगा कि कैसे सबका साथ सबका विकास के नारे को ज़मीन पर मज़बूत करें देश को आगे बढ़ाये। यदि आलेख पसंद आया हो तो कमेंट ज़रूर करना।

राम की शक्ति पूजा यहाँ जाकर पढ़ सकते हैं। 

https://www.hindwi.org/kavita/ram-ki-shakti-puja-surykant-tripathi-nirala-kavita

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