वामपंथी उग्रवाद क्या है?
आज मुझे एक बच्चे को भारत में वामपंथी उग्रवाद को समझाना था। वह बच्चा आये दिन अख़बार के पहले पन्नों पर वामपंथी उग्रवाद के बारे में पढ़ता रहता है। उसके भीतर की जिज्ञासा इस विषय पर बढ़ती जा रही है। सुबह मैं चाय पी रहा था तभी उसने मुझे पूछा कि वामपंथी उग्रवाद क्या होता है। जल, जंगल और ज़मीन की लड़ाई को वामपंथी उग्रवाद क्यों कहा जाता है? हज़ारों बेगुनाह लोग को मार दिया जाता है। उसका शोषण होता है। फिर भी उन्हें वामपंथी उग्रवाद कहा जाता है। मैं शांत रहा फिर धीरे-धीरे उसे समझाने का प्रयास करना शुरू किया।
देखो वामपंथ से किसी को कोई समस्या नहीं है लेकिन जब कोई विचारधारा ज़मीन पर खूनी होली खेलना शुरू कर दे तो राज्य शांति स्थापित करने के लिए किसी हद तक जा सकती है। इस उत्तर पर भी उसके कई प्रश्न थे। पहले वामपंथी किताबों में थे फिर वामपंथी चरमपंथी बन गये। लोगों में क्रांतिकारी आंदोलन की अपनी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए हिंसा का सहारा लेने लगें समस्या यही से शुरू होती है।
फिर उसने धीरे स्वर में पूछा इसका प्रारंभ कैसे हुआ?
इसका आरंभ नक्सलबाड़ी पश्चिम बंगाल वर्ष 1967 में हुआ था। लेकिन राज्य द्वारा नक्सलबाड़ी क्षेत्र में वामपंथी उग्रवादी आंदोलन की पहली लहर को बिना अधिक रक्तपात के और अपेक्षाकृत कम समय में प्रभावी ढंग से नियंत्रित किया गया था।
लेकिन बाद में यह आंदोलन पश्चिम बंगाल से बाहर फैल गया और 2004 में विभिन्न अलग समूहों के सीपीआई (माओवादी) में विलय के बाद माओवादी आंदोलन के रूप में जाना जाने लगा था।
लेकिन इसके बाद उनका विचारों से निकल कर सैन्यीकरण की ओर बढ़ गया। साथ ही साथ अत्याधुनिक हथियार, गोला बारूद सभी का सहारा ले लिया गया। साथ ही बाद में हमले का रुख़ जनता की तरफ़ घुमा दिया गया। कुछ देर बाद उसने मुझे इसकी परिस्थिति पर चर्चा करने के लिए कहा। आज मेरी तैयार उस तरह नहीं थी लेकिन उसे समझाने के लिए मुझे पहले बहुत कुछ पढ़ना पड़ा। सबसे पहले हमें देश किन किन राज्यों में नक्सली क्षेत्र आते हैं उस पर चर्चा करना चाहिए।
देश में नक्सली प्रभावित क्षेत्र:
भारत में नक्सली आंदोलन 10 राज्यों के 106 जिलों में “रेड कॉरिडोर” के रूप में जाना जाता है। जिनमें मुख्य रूप से ओडिशा (5 प्रभावित जिले), झारखंड (14 प्रभावित जिले), बिहार (5 प्रभावित जिले), छत्तीसगढ़ (10 प्रभावित जिले), मध्य प्रदेश (8 प्रभावित जिले), महाराष्ट्र (2 प्रभावित जिले) और पश्चिम बंगाल (8 प्रभावित जिले) आंध्र प्रदेश, शामिल हैं।
देश में वामपंथी आंदोलन फैलने के और भी कई कारण है। उसे मुझे समझाना था इसलिए सोचा इस पर थोड़ा विस्तार से चर्चा करना चाहिए।
वामपंथी उग्रवाद के फैलने के कारण-
वामपंथी उग्रवाद के कई कारण हैं लेकिन भूमि संबंधी कारक को प्रमुख माना जाता है। भूमि संबंधी क़ानून का इतिहास देखेंगे तो अंग्रेजों ने स्थाई बंदोबस्ती लाकर और ज़मींदारी प्रथा शुरू करके इस विवाद का बीज बोया। अंग्रेज चले गये और रह गये उनके नियम और क़ानून।
अभी भी देखा जाता है कि गाँव में किसी के पास हज़ार बीघा ज़मीन है तो वहीं किसी के पास दो कट्ठा ज़मीन भी नहीं है। आज़ादी के बाद सही तरीक़े से सीलिंग कानूनों को लागू नहीं किया गया। बढ़ती बेरोज़गारी घटता रोज़गार का अवसर, जमींदारों द्वारा संविधान को नहीं मानना आदि। लेकिन जब कोई हथियार उठा लेता है तो वह अपने आप को अधिक ताकतवर समझने लगता है। बाद में ऐसे कई कांड हुए हुए जहां नैतिकता को तिलांजलि दे दी गई। वामपंथी उग्रवाद ने भी वही किया जो युद्ध में दुश्मन देश की सेना करती है। महिलाएँ किसी भी घर की हो वह बलात्कार की शिकार हुई। बच्चे अनाथ हुए। स्त्रियाँ विधवा हुई। यही सब दृश्य ने लोगों को बेचैन किया। परिणाम यह हुआ कि वामपंथी उग्रवाद ने धीरे-धीरे अपना ज़मीनी पकड़ खो दिया।
सामाजिक कारण
जब समाज के शक्तिशाली वर्गों द्वारा सरकारी और सामुदायिक भूमि (यहां तक कि जल निकायों) पर अतिक्रमण और कब्ज़ा किया गया था। तब इस घटनाओं ने इन लोगों को भीतर से आंदोलित किया।
जब भूमिहीन गरीबों द्वारा खेती की जाने वाली सार्वजनिक भूमि पर स्वामित्व नहीं था और हक़ छीना जा रहा था तब लोगों के आँखों में इनके प्रति अपार सहानभूति थी।
आदिवासी की भूमियों को गैर-आदिवासियों द्वारा जालसाज़ी करके क़ब्ज़ा करना भी एक बहुत बड़ा कारण है। इस पर हिन्दी साहित्य की लेखिका निर्मला पुतुल की रचना का ज़िक्र करना बहुत ज़रूरी है।
मेरा सबकुछ अप्रिय है उनकी नजर में
प्रिय हैं तो बस
मेरे पसीने से पुष्ट हुए अनाज के दाने
जंगल के फूल, फल, लकड़ियाँ
खेतों में उगी सब्जियाँ
घर की मुर्गियाँ”
(निर्मला पुतुल, नगाड़े की तरह बजते शब्द, भारतीय ज्ञानपीठ, नई दिल्ली,पृ.73)
आदिवासियों द्वारा परंपरागत रूप से उपयोग की जाने वाली भूमि से उन्हें बेदखल कर दिया गया। सरकारी नियम को ग़लत तरीक़े से लागू किया गया।
परिणाम में देखा गया विस्थापन और जबरन बेदखली जिसने लोगों को आंदोलित किया और साथ ही बुद्धिजीवी तबके का समर्थन इन आंदोलन को मिलता गया। नतीजा ये हुआ का ये आंदोलन के साथ-साथ विमर्श भी बन गया।
कई बार यह भी देखा गया कि नये नये प्रोजेक्ट के कारण इन आदिवासियों को विस्थापित किया गया। जिसमें कारण तो सार्वजनिक बताया गया लेकिन संसाधनों में इन्हें न तो हिस्सा मिला और न ही नौकरी और न ही उचित मुआवजा। साथ ही पुनर्वास के नाम पर इन्हें ठगा गया। बेघर किए गए इन लोगों के पास आजीविका संबंधी प्रमुख समस्या उठ खड़ी हुई। जिसमें खाद्य सुरक्षा का अभाव सबसे बड़ा समस्या था।
शहर आने पर भी इन्हें सम्मान नहीं मिला बल्कि इनका सोच समझ कर मानसिक रूप से सामाजिक बहिष्कार किया गया। इनके गरिमा का खंडन किया गया।
कुछ क्षेत्रों में विभिन्न रूपों में इनके साथ अस्पृश्यता का चलन जारी रहा। इनके साथ अत्याचारों की रोकथाम, नागरिक अधिकारों की सुरक्षा और बंधुआ मजदूरी के उन्मूलन आदि पर विशेष कानूनों का खराब कार्यान्वयन किया गया।
शासन और प्रशासन संबंधी कारक में देखा जाये तो भ्रष्टाचार और प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल और शिक्षा सहित आवश्यक सार्वजनिक सेवाओं का खराब प्रावधान रहा।
यह भी देखा गया है कि अक्षम, कम प्रशिक्षित और कम प्रेरित सार्वजनिक कर्मी जो अधिकतर अपने तैनाती के स्थान से अनुपस्थित रहते हैं जिनसे इन लोगों की समस्या सुलझने के बजाय और अधिक उलझता चला गया।
कई बार में खबरों में यह देखा गया है कि पुलिस द्वारा शक्तियों का दुरुपयोग और कानून के मानदंडों का उल्लंघन किया गया है।
चुनावी राजनीति में विकृति और स्थानीय सरकारी संस्थाओं की असंतोषजनक कार्यप्रणाली ने भी
ये कारण मुख्य रूप से आदिवासी आबादी वाले वन क्षेत्रों में सबसे अधिक स्पष्ट हैं, जो इस प्रकार वामपंथी चरमपंथी हिंसा के मुख्य साधन और शिकार बन जाते हैं।
नक्सलियों को फण्ड कहाँ से मिलता है या धन के स्रोत क्या हैं :
यह देखा गया है जहां भी नक्सल आंदोलन चल रहा है वह क्षेत्र प्राकृतिक खनिज से संपन्न है। इसलिए यहाँ काम करने वाले ठेकदार से जबरन वसूली किया जाता है। साथ ही यह भी माना गया है कि इन्हें पड़ोसी देश के ख़ुफ़िया एजेंसी से हथियार और रुपया दोनों दिया गया है। इसलिए इस आंदोलन को आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा ख़तरा बताया गया है।
वामपंथी उग्रवाद प्रसार की वर्तमान स्थिति में यह देखा गया है कि वर्ष 2010 से इसमें कमी शुरू हुई और आज तक जारी है। जो गिरकर लगभग 77% की कमी आई है।
कुल मिलाकर वर्तमान में देश में वामपंथी उग्रवाद की स्थिति पर चर्चा की गई है। इस तरह कुछ टूटी फूटी भाषा में इस पूरे आंदोलन को समझाने का प्रयास किया। इस विषय पर आप दूसरे वेबसाइट पर जाकर भी जानकार हासिल कर सकते हैं-
https://www.drishtiias.com/hindi/loksabha-rajyasabha-discussions/naxalism-and-its-challenges
साथ ही आप दूसरी खबर के लिए हमारे वेबसाइट पर आ सकते हैं https://bhashatimes.com/